पकड़ी जो तेरी उंगलियाँ
हम दौड़ना सिख गये,
सुनके वो मीठी लोरियाँ
हम बोलना सिख गये,
जब छुपा तेरे आँचल के तले
खुद को महफूज़ पाया मैं,
हाथ रखा जो सर पे
गीर के संभलना सिख गये,
ये “वज़ूद” है मेरा जो
तेरी दुआओं का ही करम है,
बसा चरणों मे ही तेरी
मेरा ईमान-ओ-धरम है
जब सर रखूं तेरी गोद मे
जन्नत भी फीका मुझे लगे,
मेरी उम्र की दुआ करने वाली
मेरी उमर भी तुझे लगे,
पूछा जो मैने रब से तूने
है जन्नत कहाँ बनाया,
तेरी गोद ही है जन्नत
रब ने भी ये बताया,
अदम्य है वर्णन तेरा,मैं
कलम यहीं रोक लेता हूँ,
धन्य है तूँ हे-माई
मेरी ख़ुशनसीबी जो
मैं तेरा बेटा हूँ………..!
Post a Comment